Veer Tejaji Maharaj History in Hindi :-लोक देवता तेजाजी को भगवान शिव का अवतार मानते हुए इनकी पूजा की जाती है। ये राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। तेजाजी का जन्म माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे।

Veer Tejaji Maharaj History in Hindi-विवाह

तेजाजी की शादी राय मल की पुत्री पेमल से हुई थी। तेजाजी का विवाह पेमल के साथ पुष्कर में 1074 ई॰ में हुआ था जब तेजा 9 महीने के थे और पेमल 6 महीने की थी। पेमल के मामा का नाम खाजू-काला था और वह तेजाजी के परिवार से दुश्मनी रखता था और इस रिश्ते के पक्ष में नहीं था। पेमल के मामा और ताहरजी के बीच विवाद पैदा हो गया। खाजा काला इतना क्रूर हो गया कि उसने उसे मारने के लिए ताहरजी पर हमला कर दिया। अपनी और अपने परिवार की रक्षा के लिए, ताहरजी को तलवार से खाजू काला को मारना पड़ा। इस कारण से पेमल की माँ ने उसे ससुराल नहीं भेजा था।

तेजाजी को आया गुस्सा चले ससुराल
एक रोज खेत में तेजाजी हल चलाने गए थे और उस दिन उनकी भाभी खाना लेकर थोड़ी देर से पहुंची। भाभी से तेजाजी ने पूछा कि कैसे इतनी देर हो गई, तो भाभी ने ताना देते हुए कहा कि तुम्हारी पत्नी तो पीहर में मौज कर रही है और मैं यहां काम कर करके पिसती जा रही हूं। तेजाजी को यह सुनकर बुरा लगा और वे ससुराल का पता पूछकर घोड़ी पर सवार होकर ससुराल के लिए निकल पड़े। तेजाजी जब ससुराल पहुंचे तो वहां उनकी सास गायों से दूध निकाल रही थी। तेजाजी के घोड़े के खुर की आवाज से दूध देती गाय बिदक गई। इस पर उनकी सास को क्रोध आया और उन्होंने बोला- कि नाग रो झातियोड़ो ओ कुण है? जणी गायां ने भिड्का दी। यह बात सुनकर तेजाजी को बुरा लगा और वे तुरंत वहां से लौट गए। ससुराल वालों को इसकी खबर लगने पर उन्हें रोकने की बहुत कोशिश हुई लेकिन वे नहीं माने। पत्नी ने किसी तरह एक रात ठहरने को राजी किया लेकिन वे ससुराल में नहीं बल्कि लाछा नामक एक पुजारी के घर ठहरे।

प्रचलित कथा- Veer Tejaji Maharaj History in Hindi
तेजाजी बचपन से ही साहसी थे। वह जोखिमभरे काम करने से भी नहीं डरते थे। एक बार तेजाजी अपने साथी के साथ बहन पेमल को लेने उसके ससुराल गए थे। जब वह बहन के ससुराल पहुंचते तो उनको पता चला की मेणा नामक डाकू पेमल के ससुराल की सारी गायों को लूट कर ले गया। अब वे अपने साथियों के साथ जंगल में मेणा डाकू के पास बहन की गायों को छुड़वाने गए। इसी दौरान रास्ते में एक बांबी के भाषक नामक एक सांप घोड़े के सामने आ जाता है और उनको डंसने की कोशिश करता है। तभी तेजाजी उस सांप को यह वचन देता है कि मैं अपनी बहन की गायों को छुड़ाने के बाद फिर यहीं लौटूंगा, तब तुम मुझे डस लेना। ये सुनकर सांप उनका रास्ता छोड़ देता है। डाकू से अपनी बहन की गाये छुड़ाने के बाद वे लहुलुहान हालत में उस नाग के पास पहुंचे है। तेजा की स्थिति देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा हुआ है, अब मैं डंक कहां मारूं। यह सुनते ही तेजा उसे अपनी जीभ पर डंक मारने को कहते हैं। लेकिन इनकी वचनबद्धता को देखकर नाग उन्हें आर्शीवाद देता है और कहता है कि आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर जो व्यक्ति सर्पदंश से पीड़ित होता है, वह तुम्हारे नाम का धागा (तांती) बांधेगा, उस पर जहर का असर नहीं होगा। उसके बाद नाग तेजाजी की जीभ पर डंक मार देता है। और उनकी मौत हो जाती है। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए।
तेजाजी संग रानी पेमल, घोड़ी और नाग देवता की होती है पूजा
बता दें कि तेजाजी के भारत में अनेक मंदिर हैं। इनका मुख्य मंदिर खरनाल में हैं। तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात तथा हरियाणा में हैं। तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान, मध्यप्रदेश के मालवा, झाबुआ, निमाड़ में मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर तेजाजी के मंदिरों में मेला लगता है।